मोम बने एहसासों को
क्यों आंच कोई पिघलाती नहीं
सीले ठिठुरते आँगन में
उमड़े आँखों भर ये सैलाब
क्यों गालों को नहलाता नहीं
बरबस ढह जाए ये बाँध
क्यों प्यार से कोई सहलाता नहीं
है शब्दों का कोलाहल अंतर में
क्यों कोई मगर सुन पाता नहीं
अखबारी बस्ती के बेनाम किस्सों
की खबर कोई क्यों लाता नहीं
है सबका साहिल, सबके मकाम, सबका घर
क्यों मंजिल बस अपनी ही आती नहीं
मैं हूँ बस जिसका, और जो बस मेरा
क्यों ऐसा कोई साथी नहीं
.............................................सवाल सौ हैं, जवाब एक तो मिले
क्यों आंच कोई पिघलाती नहीं
सीले ठिठुरते आँगन में
क्यों धूप कोई आती नहीं
उमड़े आँखों भर ये सैलाब
क्यों गालों को नहलाता नहीं
बरबस ढह जाए ये बाँध
क्यों प्यार से कोई सहलाता नहीं
है शब्दों का कोलाहल अंतर में
क्यों कोई मगर सुन पाता नहीं
अखबारी बस्ती के बेनाम किस्सों
की खबर कोई क्यों लाता नहीं
है सबका साहिल, सबके मकाम, सबका घर
क्यों मंजिल बस अपनी ही आती नहीं
मैं हूँ बस जिसका, और जो बस मेरा
क्यों ऐसा कोई साथी नहीं
.............................................सवाल सौ हैं, जवाब एक तो मिले