Thursday, December 9, 2010

Kyon

मोम बने एहसासों को
क्यों आंच कोई पिघलाती नहीं
सीले ठिठुरते आँगन में
क्यों धूप कोई आती नहीं

उमड़े आँखों भर ये सैलाब
क्यों गालों को नहलाता नहीं
बरबस ढह जाए ये बाँध
क्यों प्यार से कोई सहलाता नहीं

है शब्दों का कोलाहल अंतर में
क्यों कोई मगर सुन पाता नहीं
अखबारी बस्ती के बेनाम किस्सों
की खबर कोई क्यों लाता नहीं

है सबका साहिल, सबके मकाम, सबका घर
क्यों मंजिल बस अपनी ही आती नहीं
मैं हूँ बस जिसका, और जो बस मेरा
क्यों ऐसा कोई साथी नहीं

.............................................सवाल सौ हैं, जवाब एक तो मिले